Saturday, February 24, 2018
Kalia, the True Bhakt
Wednesday, October 11, 2017
The Lego & the Nation
Sunday, September 10, 2017
Journalist Don't wait for Middle-class awakening
Thursday, April 23, 2015
किसान की नीलामी
नहीं पता सरकार किसकी है
नहीं पता दरकार किसकी है
सत्य तो वो है जो कल गुज़र गया
इस रफ़्तार से रूठ ठहर गया
आज अखबार की खबर
कल फिर चल पड़ेगा ये शहर
शव को तौला हमने उसकी सोने की तराज़ू में
इंसानियत नीलाम की चंद मौहरों में
उसकी लाश पर बनेगा एक कारखाना
बनेगी स्टील बढेगा देश का खजाना
कल भूल चलेंगे उसके आँसूं हमसब
किसी सीमेंट के बगीचे में गयी है इंसानियत थम
खेत भूल गए खो गयी मिट्टी की मादक महक
किसी गुमनाम शमशान में जल रही है इंसानियत दहक दहक
उद्योग तुम्हारा शहर तुम्हारा
उजर गया गुलिस्तां हमारा
सोने की लंका आज फिर रची है
अशोक वाटिका आज फिर सजी है
क्या कलियुग में रावण करेगा रणविजय
राम की जयकार भूल कर जीतेगा भय
सुदामा क्या दरिद्र रहेगा
क्या गंगा में लहू बहेगा
किसी की ताकत बनी है धन
और कइयों को बनाया इसने निर्धन
जिस किसान के पास था हल
आज बना वो लाचार निर्बल
क्या आज फिर चुप बैठेगा इंसान
एक बार फिर मजबूर मरेगा कोई किसान
लाशों के पहाड़ पर तिरंगे की शान
यही बन गया है क्या हिन्दुस्तान।
Wednesday, April 22, 2015
एक किसान की मौत
देखा हिंदुस्तान ने
कौन था वो, किसको पता
किस गम में था वो बेचारा
जो खेत छोड़ शहर वो आया
जो हल चलाने वाले हाथ थे
क्यों बना बैठे फांसी का फंदा
कौन था उस भीड़ में ज़िंदा
कुछ बोलने वाले कुछ मौन धारी मुर्दा
किसकी ज़मीन, किसके मकान
किस दाम में बिकेगा आसमान
किस शहर में बसेगा हिंदुस्तान
आज फिर मर गया एक किसान
उसे बचाने वाला,
न था कोई इंसान
न कोई भगवान
जिया बेनाम, मारा अनजान
सूनी शमशान में एक और मेहमान
क्यों है मेरा भारत महान